घर में रोते हुए डर लगता है कि घर की दीवारों को याद रह जाता है आँसुओं का सीलापन। मैं फिर कभी भी वहाँ चैन से बैठ कर मुस्कुरा नहीं सकती। घर में कई चीज़ें बेक़रीने पड़ी हुयी हैं। स्टडी टेबल और किताबों के सिवा सब कुछ ही तितर बितर है। यहाँ किसी चीज़ की कोई फ़िक्स जगह नहीं है।
हॉल में आती धूप का कोना है जहाँ बैठ कर कविताएँ पढ़ती हूँ, बारिश देखती हूँ और विंडचाइम का नाच देखती हूँ और सुनती हूँ। अक्सर सुबहें धूप के समंदर में फ़्लोट करते बीतती हैं। मैं बंद आँखों के पीछे के नारंगी में ज़िंदगी की सबसे नर्म और गर्माहट भरी यादों को जीती हूँ।
स्टडी में तो बस लिखने पढ़ने की जगह होती है। घर के सोने के कमरे में चाँद होता है, ढलती शाम के गहरे लाल-गुलाबी-सुनहले रंग होते हैं। सामने के तार पर दौड़ती गिलहरी होती है। यहाँ रोने पर सपनों में नदियाँ और समंदर आएँगे।
मैं सुबह जिम जाती हूँ। ट्रेड्मिल पर ९ किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से दौड़ते हुए पूरा चेहरा भभक के लाल हो उठता है। ख़ून बदन में बहुत तेज़ दौड़ता है। दिल बहुत तेज़ धड़कता है। मैं अपनी ऐपल वॉच देखती हूँ। उसमें ऊपर बाएँ कोने पर तुम्हारे शहर का वक़्त एक छोटी सी घड़ी में दर्ज है। 12.30 am मैं देख कर चौंक जाती हूँ। मैं तुम्हारे शहर का समय भूल गयी हूँ। मैं भूल गयी हूँ कि तुम्हारे शहर को कितनी जगह पर याद की चिप्पी जैसा रखा है। तुम्हारा ना होना दुखता है। कितनी सारी बातें हैं जो मैं तुमसे करना चाहती हूँ।
चेहरा पसीना पसीना हो उठता है और आँख भी भर आती है। मेरे पूरे दिन में ये इकलौता वक़्त होता है जब मैं चश्मा नहीं पहनती हूँ। सामने सब कुछ धुँधला होता है और मैं किसी भी शहर में हो सकती हूँ। मैं जैसे तेज़ और तेज़ भागती हुयी यादों को पीछे छोड़ देना चाहती हूँ। तुम्हारा शहर। तुम्हारी शर्ट्स के रंग। तुम्हारी हँसी। तुम्हारे साथ होना। दौड़ते हुए मालूम नहीं चलता कि आँख से आँसू कब टपका कि तपे हुए चेहरे पर गर्म आँसू और पसीना दोनों मिलेजुले होते हैं। मैं इतना रोती हूँ जैसे आँसुओं में ही तुम्हारा पूरा शहर घुल कर बह जाएगा मेरे बदन से बाहर। बीस मिनट बाद रूकती है ट्रेड्मिल। मैं अहतियात से उतरती हूँ कि सब कुछ ही चलता हुआ लगता है। छोटे से तौलिए से चेहरा पोंछती हूँ। आधा बोतल पानी पीती हूँ धीरे धीरे। तेज़ चलती सांसें थोड़ा ठहरती हैं। पर आँख अबडब ही है।
आर्क ट्रेनर एक नर्क से आयी हुयी मशीन है। ये मुझे कभी अच्छी नहीं लगी। मैं कितना भी कुछ करूँ मैं इसपर कभी ख़ुश नहीं रहती। बस बहुत तेज़ संगीत सुनते हुए इसपर बीस मिनट निकालने होते हैं। मैंने मशीन पर फ़ोन, चश्मा और मोबाइल रख दिया है और धीरे धीरे चलती हुयी पानी की बोतल भरने वोटर फ़िल्टर के पास जाती हूँ। बग़ल में योगा करने की जगह है। मैं देखती हूँ मैट पर एक लड़की एक्सर्सायज़ कर रही है। उसका एक नक़ली पैर है, स्टील का। वो सोयी हुयी है और उसके पैर हवा में हैं। मैं देख कर सोचती हूँ, कितने तरह के दुखों से लड़ रहे हैं दुनिया भर में लोग। मैं लौट कर आर्क ट्रेनर पर आती हूँ। धीरे धीरे मूव करना शुरू करती हूँ। हेड्फ़ोन पर तुम्हारी पसंद का गाना बज रहा है। मेरे बग़ल वाली मशीन पर कोई अंकल जी हैं। धीरे धीरे चल रहे हैं वो मशीन पर। मैं शुरुआत हमेशा तेज़ करती हूँ। ग़नीमत है कि आज जिम का एसी बहुत तेज़ नहीं चल रहा। तुम्हारी फिर याद आती है। मेरी आँख फिर भर आती है। सामने शीशे के पार कोई बड़ा पुराना पेड़ है। उसके पत्ते धुँधले दिख रहे हैं। मैं नहीं जानती ये चश्मे के कारण है या आँसुओं के कारण। मेरा चेहरा बहुत उदास और रूखा हो गया है। तुम्हें विदा कहना याद आता है। तुम्हारे गले लगते हुए तुम्हारी शर्ट का टेक्स्चर अपने गालों पर जो महसूस किया था। थोड़ा सा नीला रंग आँखों में है। कोई नीली नदी? मैं नहीं जानती। मैं जानती हूँ कि तुम्हारी बहुत बेतरह याद आ रही है।
मैं बहुत तेज़ चल रही हूँ मशीन पर। दिमाग़ भी वैसे ही यादों में डूब उतरा रहा है। मैं जाने कौन सा मोलतोल कर रही हूँ अपने मन में, ख़ुद से ही बतिया रही हूँ। कि देखो मैं अपनी सीमा से एक इंच भी बाहर क़दम नहीं रखूँगी। मैं एकदम उतनी ही बात करूँगी तुमसे जितना कि सभ्य समाज में अलाउड है। मैं एकदम ही ज़्यादा प्यार नहीं करूँगी तुमसे। कभी भी नहीं। लेकिन तुम जाओ मत। तुम रहो। कि मुझे तुम्हारी याद आती है। कि मैं ऐसे लोगों के चले जाने से दुखती हुयी टूटती जा रही हूँ। कि मैंने किया क्या है। कि तुम कैसे इतनी आसानी से जी सकते हो अपने शहर में। कि मेरी ज़िंदगी में इतने क्रूअल लोग क्यूँ आते हैं। मेरा इतना दिल दुखाने का उनको अफ़सोस नहीं होता? कितना मुश्किल होता है किसी का फ़ोन उठा कर कहना, मैं व्यस्त हूँ…या कि मुझसे थोड़ी देर बात कर लेना ही।
चेहरा फिर से तप रहा है। आँसू पता नहीं चलते। पर जाने क्यूँ लगता है बग़ल वाली मशीन के अंकल जी ने चौंक कर देखा है। क्या उन्हें आँसू और पसीने में फ़र्क़ पता चल जाता है? क्या मेरे चेहरे पर तुम्हारे नाम का कोई अक्स है। मैं याद में रो रही हूँ, या कि उस सुख के खो जाने पर जो कि इतना अपना था। कि तुम जो इतने अपने थे। मैं जानती हूँ एक दिन भूल जाऊँगी मैं तुम्हें और तुम मुझे। लेकिन ये कितनी उदास बात होगी।
मशीन से उतरती हूँ। चेहरा पोंछती हूँ तौलिए से। सारे आँसू अब भी बाहर नहीं निकले। कल फिर आऊँगी। तुम्हारी हर याद को कैलोरी की तरह बर्न करने। कि फ़िलहाल मेरी दुनिया में रोने को यही एक जगह है। अपने लिखे शहरों में आजकल दिल नहीं लगता।
मैं फिर भी चाहती हूँ, तुम्हारे लिए आसान रहा हो। यूँ मुझे बिसार देना। माँगती हूँ दुआ कि तुम्हें तुम्हारे बेतरह ख़ूबसूरत शहर में रोने की कोई जगह तलाशनी ना पड़ी हो।
प्यार। बहुत।
#soulrunes #daysofbeingwild #almoststrangers #cityshots
Nice
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