‘तुमसे किसी को भी डर लगेगा’
‘डर। कुछ भी। डर क्यूँ लगेगा?’
‘मुश्किल सवाल है। धैर्य से सुनो। समझाने की कोशिश करता हूँ। क्यूँकि मेरे सिवा किसी और इंटेलिजेंट इंसान को तुम जानती नहीं जो तुमको ये बात समझा सके। सिम्पल बात है, लेकिन सामने से दिखती नहीं। देखो। तुम्हारे जैसी भयानक तरीक़े से इंडिपेंडेंट लड़की कि जो अपने मूड और मिज़ाज का हाल मौसम तक को अफ़ेक्ट नहीं करने देती। कि जो बारिश को मन का मौसम समझती है। कि जो जानती है कि सब कुछ उसकी भीतरी दुनिया से कंट्रोल होता है और उस हिसाब से जीती है। जो अपनी ख़ुशी और अपने ग़म के लिए ख़ुद से रेस्पॉन्सिबिलिटी लेती है…
तुम्हारे जैसी लड़की…जब ज़रा सा किसी लड़के के साथ वक़्त बिताती है। देखती है उसे मुस्कुरा कर। लम्हे भर को रिलैक्स होती है, अपना सर टिकाती है उसके कंधे पर और कहती है एक उसाँस भर के…मैं ख़ुश हूँ तुम्हारे साथ…तो लड़का डर जाता है…तुम्हारी ख़ुशी का कारण बनने से…ये इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी है कि उसके कंधे सोच के ही दुखने लगते हैं। उसे लगता है कि आज ख़ुशी है तो कल ग़म भी होगा। वो तुम्हारे ख़ुशी ग़म किसी का कारण नहीं बनना चाहता। तुम लड़की नहीं, नदी हो। पहाड़ी नदी…फ़िलहाल तो तुम कहीं नहीं रुक सकती। बहुत ज़िंदगी, कई शहर देखोगी तो थमोगी थोड़ा। ठहरोगी।
एक नदी जैसी लड़की के ठहरने की अंतिम जगह समंदर ही होता है। और हर लड़का समंदर नहीं होता कि तुम्हें अपने बाँहों में समेट कर कह सके। ये तुम्हारा घर है। तुम यहाँ रह सकती हो। हमेशा के लिए।
तुम बहुत मज़बूत हो। तुम्हारे क़रीबी लोगों को तुम्हारे टूटने का डर लगता है कि तुम्हें सम्हालने के लिए तुमसे ज़्यादा मज़बूत होना पड़ेगा। ये जो अपनी ज़िंदगी इतने कटघरों में बाँट के जीती हो, हर सही ग़लत का क्षण क्षण हिसाब लगाते हुए, तुम्हारे काँधे का ये बोझ ज़रा सा कम करना बहुत मुश्किल है। अपने गुनाहों के स्याह में जब घुल कर तुम लिखती हो क़िस्सा कोई तो कौन तुम्हारे लिए सूर्य बन जलेगा। इतना आसान नहीं होता।
तुम्हारा प्रेम साँस लेने की जगह भी छोड़ता है? तुम्हें किनारे पर से बैठ कर देखा भी नहीं जा सकता, ऐसा घातक आकर्षण है तुम में। तुमसे दूर रहना ही श्रेयस्कर है। तो जब तक चाँदनी रात में तुम्हारे होने की कलकल ध्वनि सुनी थी, तुम्हारे घाट पर बैठ कर लालटेन की रौशनी में किताब पढ़ने को जी चाहा था। लेकिन सुबह की धूप में तुम्हारा वेग देख कर मैं भी चौंक गया हूँ। तुम्हारे प्रेम में अवश होना पड़ेगा। और हर व्यक्ति तुम्हारी तरह कंट्रोल फ़्रीक नहीं होता, लेकिन सब तुम्हारी धार में बह भी नहीं सकते। इसलिए वे डरते हैं। तुम्हारे चपेट में आने से। तुम्हारे प्रेम को ज़रा भी महसूसने से। तुम्हारे क़रीब आने से। समझी अब?’
‘समझ के क्या ही होगा। थोड़े ना बदल जाऊँगी कोई शांत झील या जलकुंड में कि कोई भी नहा ले। ऐसे ही ठीक है। शहर शहर का क़िस्सा सुनना कोई बुरा तो नहीं है। और अंत में होगा ही कोई सागर। जहाँ जा के ठहर सकूँगी मैं। तो फिर उसके पहले जितना भी भटकाव हो। ठीक है। लेकिन ऐसा भी क्या डरना। डूब जाना हमेशा मर जाना थोड़े होता है। कंट्रोल करके डाइव भी तो मारते हैं लोग। डूबने के बात उतराना भी तो होता है। तुम भी चले जाओगे अब?’
‘लग तो रहा है। डर लगता है तुमसे। तुम इतनी ख़ुश रहती हो मेरे साथ। तुम्हारी आदत बनने से डर लगता है।’
‘अलविदा कह के जाना। अचानक से ग़ायब मत हो जाना’
‘अलविदा कह के जाना सम्भव नहीं है, ऐसे सिर्फ़ लौटना होता है। जाना तो अचानक ही पड़ेगा। तुम्हें यूँ ही, किसी कच्चे चाँद की रात को, कच्ची नींद के बीच छोड़ कर। तुम फ़ोन रखना और काश कि भूल जाना कि मैं था।’
‘सपना था। सपना था सब।’
***
लड़की अलार्म की तीखी आवाज़ से हड़बड़ा के उठती है। दौड़ते हुए फ़ोन तक जाती है और अलार्म बंद करती है। उसकी हथेलियों में समंदर का पानी है जिसमें चाँद घुला है। वो हथेलियाँ खोलती हैं तो कमरे भर में चाँद रंग का समंदर का पानी छिलकते जाता है।
लड़का नींद पूरी करके जागता है। उसे तीखी प्यास लगी हुयी है। जैसे रात भर समंदर में डूबता उतराता रहा हो।