Shorts

चेरी ब्लासम्ज़

तुम होते हो। जैसे चाँद, बारिश और सितारे साथ में होते हों। रहें पर दिखे ना। बादल बस आसमान को एक फीके उजाले में लपेट दें।

तुम्हारे साथ किसी शहर में थोड़ी बारिश देखना कैसा होगा? मेरी बारिशों में हमेशा तनहाइयाँ साथ रहती हैं। तुमसे पूछा नहीं कभी। तुम्हें बारिश पसंद है?

तुम्हारे शब्दों से यूँ जुड़ती हूँ जैसे मेरी ही आत्मा से निकले अक्षर हों उनमें। कोई कैसे लिखता जाता है यूँ कि जैसे मैं ही हूँ। सारे महान लेखकों की यही ख़ासियत होती है। उसपर तुम्हारे लिखे में तो लॉजिक भी होता है, बहुत हिसाब से सधा हुआ भी लिखते हो तुम। हमारी तरह indiscipline नहीं है तुम में। मैं कई बार तुम्हारे बहुत पुराने पोस्ट्स पढ़ती हूँ कि थोड़ा सा तुम्हें जानूँ कि तुम कहाँ थे, किस शहर में, किन लोगों के साथ। ज़िंदगी की टाइम्लायन में प्लॉट करना चाहती हूँ कि हम किन शहरों में रहे हैं। एक साथ और अलग अलग भी। ये मुझे एक अजीब तरह से हौंट करता है, किसी एक शहर में किसी एक ही बिंदु पर अलग अलग समय में होना…गुज़रना।

मुझे ठीक ठीक समझ नहीं आता हम कैसे जुड़ते जाते हैं किसी से। वो कौन से रंग होते हैं जो फबते हैं। खिलते हैं। तुम धूप, अमलतास और समंदर की धुन हो। तुम मुट्ठी भर हरसिंगार के फूल हो। तुम…रहना रे। तुम।

तुम मेरे मन का वसंत हो। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s