Musings

लौट आयी है ‘धुंध से उठती धुन’

सुबह इन्स्टग्रैम पर देखा, nikhiil27 ने मुझे टैग किया है। वहाँ निर्मल वर्मा की ‘धुंध से उठती धुन’ की हार्ड्कापी खोलने का छोटा सा विडीओ था(boomrang)। मैंने जल्दी से अमेजन खोला तो देखा कि २ ही प्रतियाँ बाक़ी हैं। इस साल पुस्तक मेले में निर्मल की लगभग सारी किताबें वाणी प्रकाशन से आ गयी थीं, बस धुंध से उठती धुन नहीं थी।

लगभग निंदाये में ही अमेजन पर दोनों प्रतियाँ ऑर्डर कर दीं, कि इस देश में निर्मल के दीवानों की कमी नहीं है, ख़रीद कर आउट औफ़ स्टॉक कर देंगे जल्दी ही।

इतने में सुबह के साढ़े सात बज गए थे। एक बार फ़ोन हाथ में लेकर हिचकी कि अभी सोया होगा, फिर लगा ये किसी को नींद से जगाने की सही वजह है। अनुराग को पिछले तीन साल से बुक फ़ेयर में हर बार इस किताब के आने के बारे में पूछताछ करते देखा है। जैसे हम किसी खोए हुए दोस्त को खोजते हैं, वैसे किसी किताब से इस तरह का जुड़ाव मेरे लिए अचरज की बात थी। उसकी प्रति कहीं खो गयी थी। मैंने किताब के प्रति ऐसा प्रेम नहीं देखा था। फिर, उन दिनों मैं निर्मल के प्रेम में नहीं थी। बिना ये जाने हुए कि किताब कब री-प्रिंट होगी उसका ऐसा आत्मीय इंतज़ार मुझे अफ़ेक्ट किए बिना नहीं रह सकता था।

जनवरी २०१७ में अंतिम अरण्य से मैंने निर्मल को पढ़ा और जैसा कि होता है, उनके प्रेम में डूबी। उनकी कई किताबों के मिलने, बाँटने और दुबारा पढ़ने की कई सारी कहानियाँ हैं, पर वे फिर कभी 🙂 मेरे पास धुंध से उठती धुन की दो कॉपी हैं। एक तो Pankaj Upadhyay की, और एक मेरे ख़ुद के लिए। मैं इस किताब को लेकर इतनी पजेसिव रही हूँ कि कहीं भी जाती थी तो हैंड लगेज में लेकर चलती थी कि बाक़ी सामान खो जाए तो किताब भी खो जाएगी। कि इस डाइअरी से निर्मल की कहानियाँ मिला कर देखती थीं कि मैंने जो सच वहाँ देखा, वो सच उनकी ज़िंदगी में कहीं था या नहीं।

Anurag ने नींद में फ़ोन उठाया। मैंने कोशिश की कि बेहद उत्साह में चीख़ूँ ना… लेकिन हाय हेलो नहीं, सीधे सवाल ही था, ‘तुमने धुंध से उठती धुन ख़रीदी? फटाफट उठो, Amazon पर मिल रही है, कुछ ही कापी होगी, अभी मुझे only two available दिखा रहा है’। ख़बर ही ऐसी थी कि नींद तो उड़नी ही थी। मंडे तक उसकी किताब आ जाएगी, मेरी वाली आने में अभी हफ़्ता भर लगेगा। आर्ट कितनी ख़ूबसूरत चीज़ होती है कि इससे जुड़ना कितना सुंदर करता है ज़िंदगी को। कि मुश्किल से मुश्किल समय में हमारी प्यारी किताब हाथ थाम कर अवसाद की नदी पार करा देती है।

अगले कुछ दिन हम कितना सुंदर इंतज़ार जिएँगे। किताब की छपायी कैसी है। कैसा काग़ज़ इस्तेमाल हुआ है। कैसी ख़ुशबू होगी नयी किताब की। नाम की तरह, धुंध से कोई धुन सुनायी देती है। हमें संगीतमय बनाती हुयी। एक थिरक होते हुए जाते हैं हम। इंतज़ार में।
किताब के पहले पन्ने से…

क्या दुनिया तुम्हारे पास आकर कहती है – देखो, मैं हूँ?Screen Shot 2018-06-21 at 9.59.55 AM.png
– रमण महर्षि

Everything one records contains a grain of hope, no matter how deeply it may come from despair.
– E. M. Cioran

***
मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मैंने इस किताब को उस शिद्दत से खोजा जब कि ये कहीं नहीं मिल रही थी। इस बात की, कि कुछ लोग हैं मेरी ज़िंदगी में जो किताबों के प्रति इस दीवानेपन को समझते हैं। कि ये किताब मेरे लिए आसान नहीं थी। इसका मुझ तक पहुँचना आसान नहीं था। कि कई सारी कहानियाँ हैं इस धुंध तक पहुँचाती हुयीं।

कि हर किताब एक सफ़र होती है लेकिन कुछ किताबों तक पहुँचना भी एक सफ़र होता है जो बहुत कुछ सिखलाता है। Nidheesh ने पिछले साल अंतिम अरण्य के बारे में कहा था कुछ, जो मुझे याद नहीं, पर निर्मल को पढ़ना वहीं से शुरू किया था। तो शुक्रिया, और कुछ और चीज़ों का भी।

Abhinav Goel, इंतज़ार ख़त्म हुआ दोस्त। अब तुम पढ़ ही लो इसे।

ये, बस यही, सुख है।

 

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