तुम्हारे इंतज़ार में में चंदन में घुली बैठी हूँ। भर दोपहर तरतीब से चाँद बुझाने के तरीक़े सीखते बीती है। मुझसे पहले कई प्रेमियों ने चाँद के प्रकाश पर अपनी आपत्ति जतायी है, तो मुझे इसमें कोई अपराधबोध नहीं हो रहा। मुझे कोई ख़ास शिकायत नहीं है, सिवाए इसके कि तुम्हें चाँद इतना पसंद है कि तुम पूरी रात देखते रह सकते हो उसे। एकदम चुप चाँदनी में भीगते हुए। ना कोई बात कहते हो, ना कोई धुन गुनगुनाते हो। बस चाँद की शीतलता और मुझसे उठती चंदन की गंध। इतनी ही ख़्वाहिश होती है तुम्हारी।
लेकिन इतने से मेरा जी कहाँ भरता। मैं प्यास में जलती उठती हूँ। मुझे तुमसे कविताएँ सुनने की आदत हो गयी है। तुमने इतना बिगाड़ क्यूँ रखा है मुझे?
अंधेरे में जब तुम कविता पढ़ते हो तो मेरी बंद आँखें कुछ नहीं खोजतीं। मेरे हाथों को तुम्हारा पता मालूम रहता है। मेरी दायीं हथेली तुम्हारे सीने स्थिर तुम्हारी धड़कन को कविता की लय में गूँथती रहती है। मौसम में हल्की ठंढ होती है तो तुम्हारे काँधे पर एक हथकरघे पर बनी थोड़ी मोटे धागों वाली चादर रहती है जिसमें जहाँ तहाँ गाँठें होती हैं। मक्खन रंग की इन चादरों के लिए भागलपुर नामी हुआ करता था। भले घर की लड़कियाँ बहुत गरमी में भी बिना चादर ओढ़े नहीं सोती थीं। मैं इस चादर को छू कर पहचान सकती हूँ। ये मेरे उन दिनों की याद दिलाता है जब कि कच्ची मिट्टी का घर होता था और हम बिना चप्पल अक्सर घूमा करते थे। ख़यालों में डूबती उतराती रहती हूँ और पैरों की उँगलियाँ भी गुँथती रहती हैं तुम्हारे पैर की उँगलियों से। ना सही गुदगुदी लगाती रहती हूँ तुम्हें। तुम नाराज़ होते कहते हो, देखो, फिर कोई कविता नहीं सुनाऊँगा तुम ऐसे बदमाशी करोगी तो।
मुझे ऐसा लगता है कि चाँद को ऐसे एकटक देखते हुए तुम किसी और के बारे में सोच रहे होते हो। मेरे बालों में उलझी तुम्हारी उँगलियाँ किसी और के बालों की छुअन तलाश रही होती हैं। तुम चंदन की गंध में होते हुए भी किसी बेतरह बारिश वाले दिन में भीगे जंगली गुलाबों की किसी गंध का पीछा करते हो। इतना स्थिर और शांत कोई प्रेम में ही हो सकता है।
सबसे पहले तुम्हारे हाथ अजनबी हुए और मेरे बदन पर बने तुम्हारे ठिकाने भूल गए। फिर तुम्हारी भाषा, जो कविता से चुप्पी में बदल गयी। फिर तुमने दिन भर मुझे बारिश में भिगोए रखा कि तुम चाहते थे कि चंदन की गंध धुल जाए। अच्छा बताओ, क्या बारिश में धुली, भीगी, सारी औरतें बारिश जैसी महकती हैं? पानी और आँसुओं जैसीं। मुझे याद नहीं तुम्हारी आँखें कब अजनबी हुयीं। मैंने जब पूरनमासी को तुम्हारी आँखें देखीं तो उनमें मैं नहीं चाँद था।
आज रात चाँद को आँसुओं में डुबा दूँगी, ऐसा इरादा है। मेरे साथ राहु और केतू की बात हो चुकी है। मगर इसमें मेरा कोई दोष नहीं। ये तुम्हारा ही करतूत है। तुम ही बता दो, तुम मुझे चाँद से ज़्यादा प्यार क्यूँ नहीं कर सकते?
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