मैंने तुम्हारे समय की रेखा पर देखी तुम्हारी आँख से दुनिया और जितनी है उससे कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत लगी हर वो छोटी चीज़ जो मुझे अच्छी लगती है।
मैं तुम्हारी आँखों से ख़ुद को देखने की कोशिश करती हूँ लेकिन अक्सर लगता है कि तुम आसमान देख रहे होगे, मैं चाँद देख रही होऊँगी, बारिश हो रही होगी और शहर हमारे बीच से गुज़र जाएँगे।
तुम समंदर हो रहे होगे, मैं पत्थर हो रही होऊँगी और एक क़तरे आँसू में दुनिया की सारी स्याही घुल जाएगी, गुम हो जाएँगी सारी कवितायें सिवाए उनके जो तुमने मेरी पीठ पर अपनी उँगलियों से लिखी थी…कविता के भूखे लोग मेरी चमड़ी छील ले जाएँगे और तुम्हें अफ़सोस होगा कि तुमने कभी मुझसे प्रेम किया था।
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