जिस स्त्री के पास
कुछ भी नहीं था
कवि को देने के लिए
उसी मीठी स्त्री की रसोई में
एक हाथ की दूरी पर था
चीनी का डिब्बा
उसने तीन तार की चाशनी बनायी
और पाग कर रखे कई सारे
‘विदा’
तब से, कवि की आँख में नमक था
फिर भी उसकी सारी कविताएँ
मीठी थीं।
***
मेरे पास शब्द कभी नहीं थे
लेकिन जब तुम चले गए दूर
तो मैंने पहली बार सुनी अपनी आवाज़
एक धीमी बुदबुदाहट वाली रूलाई में लिपटी हुयी
‘मौसम, मौसम, मौसम’।
***
मेरे तुम्हारे बीच
एक मौसम इंतज़ार करता है
कि हम उगा सकें कोई साझा शहर
साझी गली, साझी छत एक
और वो हमें बाँहों में भर ले
पूरा का पूरा
कि याद आए उसे अपना नाम भी
‘बारिश’
***
और ये फिर भी ठीक होता
आहिस्ता आहिस्ता दूर होना
एक दूसरे से
अगर हम दुःख से थके हुए होते।
पर हम प्रेम से थके हुए थे।