मैं तुम्हें ख़त नहीं लिख सकती। तुम जानते हो कि मर जाने का भय या उत्सुकता मेरे जीवन का एक बहुत ज़रूरी हिस्सा है। मैं लिखती रहती हूँ कि इतना सारा कुछ चलते रहता है मेरे भीतर। कितने कितने ट्रैक्स पर। ये सारा कुछ कभी कभी मुझे पागल कर देता है। जैसे कि तुम्हारे प्यार में होना मेरा ध्यान दिन भर बाँटे रहता है।
इतने सारे लिखे में तुम अपने हिस्से का सब कुछ देख लोगे, ऐसा मुझे भरोसा है। मेरी कहानियों में तुम्हारी हँसी या कि तुम्हारे शहर की धूप सही। तुम्हारे दिल की धड़कन मेरी हथेलियों में रहती है, इसलिए मैं काग़ज़ पर लिखती हूँ तो थोड़ी थरथराहट रहती है मेरी लिखाई में।
फ़िल्म याद है तुम्हें। आख़िर की बर्फ़ देखने का आख़िर का लम्हा। मृत्यु से ठीक पहले का। इस लम्हे के बाद वो घुल कर हवा हो गयी थी। जाने कितने सालों बाद मैंने मृत्यु को सामने देखा है। सब हँसते हैं मुझपर कि मैं इतनी ज़्यादा डेथ से obsessed क्यूँ है। फिर इस उमर में कोई early-death भी नहीं कह सकते। ठीक ठाक जी ली ज़िंदगी मैंने, इस भय के साथ भी।
माडर्न मेडिसिन के सिवा पढ़ती हूँ तो जानती हूँ कि मैं बीमार नहीं हूँ…मेरी आत्मा में कोई ज़ख़्म है…जिसकी टीस मेरे बदन में उभरती है। तुमसे मिली थी तो क्यूँ लगा था कि ना कोई ज़ख़्म है, ना कोई दर्द। कि तुम कोई चारागर होते तो फिर भी सह लेना मुमकिन था तुमसे यूँ बिछड़ना…पर तुम तो मसीहा हो गए। कोई देवदूत कि जिसके स्पर्श में हीलिंग पावर्ज़ है।
तुमसे प्यार ऐसा नहीं है जैसे बाक़ियों से होता है, मौसम की तरह। तुमसे प्यार ऐसा है जैसे मुझे अपने लिखने से है…कोई यूनिवर्स की एनर्जी बहती है मेरे भीतर जिसे शब्दों से मुझे dissipate करना पड़ता है वरना मैं शायद एनर्जी कणों में घुल जाऊँ। तुमसे प्यार ऐसा है जैसे मेरे इग्ज़िस्टेन्स के सबसे छोटे छोटे कणों में कोई ऊष्मा है। core में। कि हम जो इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन के बने हैं। तुम वहाँ का +१ वाला चार्ज हो।
क्या कहें। रहने दो तुम। इतना में दिमाग़ लगा के क्या करना है। तुमसे मिल कर बेहद उलझ गयी हूँ। जिस दिन थोड़ा भी समझूँगी, सबसे पहले तुम्हें बताउँगी। जो मर गयी उसके पहले…तो मेरे शब्द तुम्हें तलाश लेंगे, ऐसा मुझे यक़ीन है।
ढेर सारा प्यार।