मैंने बर्फ़ नहीं देखी है कभी। सिवाए तुम्हारी आँखों में। या कि तुम्हारे बर्फ़ दिल में। इतनी सारी बर्फ़ कि लगता है वहाँ स्केटिंग की जा सकती है, आइस स्केटिंग।
‘वे दिन’ का वो हिस्सा है ना जहाँ वे पूरे कोट, मफ़लर और दस्ताने पहने हुए किसी धुन पर डान्स कर रहे हैं, ऐसे कुछ कि कोई और उन्हें देखता तो पागल ही समझता। तुम थोड़ा बावरे हो सकते हो मेरे साथ? थोड़े से पागल। बस, थोड़े से।
रात को यूँ बेतरह तुम्हारी याद गुंथी आयी है मेरे किरदारों में कि दिल कर रहा है आज बस पूरा उपन्यास लिख कर ख़त्म कर दूँ। किसी सपने के भीतर के सपने में छुपे हुए हो तुम। इस बेतरह। बेतरह। बेतरह याद आयी है तुम्हारी। अगर ज़िंदगी में कुछ भी निश्चित तौर से जाना है, तो सिर्फ़ ये कि इस वक़्त तुम याद कर रहे होगे कहीं मुझे। मालूम नहीं कहाँ। शायद कोई सड़क पार करते हुए। शायद किसी ऐसे शहर में जहाँ मैं जा चुकी हूँ पहले या कि बारिश हो रही होगी। या तुमने फूल देखे होंगे सफ़ेद लिली के। या कि तुम भी लैप्टॉप खोले लिख रहे होगे जाने क्या क्या तो…रच रहे होगे किरदार, लिख रहे होगे टूटी फूटी कविता। गुज़र रहे होगे शहर के किसी हिस्से से और अचानक याद आयी होगी मेरी, कि मुझे शायद पसंद आता ज़मीन का ये टुकड़ा, पेंटिंग का ये रंग, संगीत का ये सुर। अच्छा, ये गाना सुनना तुम। तुमको अच्छा लगेगा।
आसान तो कुछ भी नहीं है दुनिया में, मेरी जान। लेकिन फिर भी, तुम्हें भुलाना, उफ़्फ़्फ…कि तुम जानते हो ना, उफ़्फ़्फ है, एकदम।