ज़िंदगी में जो सारी चीज़ें कई कई बार लौट कर आती हैं, उनमें से एक है भूलना। निर्मल लिखते हैं कि कोशिश करके भूलना बेतरह याद की निशानी है। लेकिन याद कभी कभी साँस में अटकने लगती है और लगता है कि भूले नहीं तो शायद जीना भूल जाएँगे। कि जीना भी कभी कभी अपनेआप नहीं होता। मेहनत करनी पड़ती है। याद दिलाना पड़ता है ख़ुद को बार बार कि ज़िंदगी जीने लायक है।
स्टडी टेबल पर रखी होती है कोई बुद्धिस्ट प्रेयर व्हील कि हमने एक दोस्त के लिए और ख़ुद के लिए साथ में ख़रीदी थी। कि मुझे चीज़ें जोड़ों में ख़रीदना अच्छा लगता है, जैसे कि हमारी दुनिया एकदम ही अलग अलग हो जाएगी फिर भी कुछ है जो हमारी ज़िंदगी में कॉमन रहेगा। कि हम शायद तुम्हें पूरी तरह कभी नहीं भूल पाएँ।
खिड़की पर विंडचाइम जिस दिन आए थे उसके कुछ दिन बाद ही टाँग दिए थे लेकिन खिड़की आज खुली है तो विंडचाइम चीख़ चीख़ कर आसमान को अपने होने की ख़बर दे रही है।
टकीला शॉट मारने के लिए ग्लास ख़रीदे गए थे। मिट्टी से गिरे सफ़ेद फूल उठा कर लायी हूँ सुबह सुबह और एक इकलौता पीला फूल तोड़ा है। कि ख़ुशी का रंग यही ख़ुशनुमा पीला है। कि भूलने की लिस्ट में उस लड़की का नाम भी तो आता है जिसे पीला रंग बहुत पसंद था।
सुबहों का थोड़ा सा डिसप्लिन खोज रही हूँ वापस कि जीने में आसान रहे। आज बहुत दिन बाद लिखने बैठी हूँ। इस नए मकान में सबसे ऊपर वाले कमरे को स्टडी के लिए इस्तेमाल कर सकें, ख़ास इसलिए ये घर किराए पर लिया था। इतने दिन सीढ़ियाँ चढ़ नहीं रही थी कि घुटनों में दर्द ना उठ जाए। आज ठीक दो महीने हो गए जब कि ये दर्द उठा था, ६ तारीख़ को ही प्लास्टर खुला था और तब से ही दर्द का ये सिलसिला शुरू हुआ। आज दर्द है, लेकिन कम है।
मौसम में खुनक है। ठंढ लग रही है लेकिन गरम कपड़े नीचे रखे हैं, तो लाने नहीं जा रही।
किरदार कुछ यूँ हैं कि जिन्हें लिखने के लिए भूलना पड़ेगा कितना सारा सच का जिया हुआ। ख़ुद को याद दिलाना पड़ेगा कि लिखने में इतनी तकलीफ़ नहीं होगी कि मर जाऊँ। कि लिखना मेरा नैचुरल स्टेट है। कि मैं सबसे सहज लिखते हुए होती हूँ। सबसे ईमानदार। कि ज़िंदगी में कुछ चीज़ें जो अब तक करप्ट नहीं हुयी हैं, उनमें से एक मेरी क़लम की निब है।
और आज शायद ज़िंदगी में पहली बार लिखने के पहले काग़ज़ के ऊपर ‘जय माँ सरस्वती’ लिखा है। कि याद, भूलने, मरने, जीने और किसी तरह लिख लेने की इस क़वायद में अकेली कुछ नहीं कर सकती। तो थोड़ा सा सपोर्ट।
इस कमरे और इस खिड़की के सामने कई क़िस्से ज़िंदा हो सकें, जी सकें अपने हिस्से का आसमान और दे सकें मुझे बस इतनी राहत कि जान ना दे दूँ।
अस्तु।
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