दिक्कत ये है मेरी जान कि ये दुनिया गोल है।
तुम मेरे शहर में आए तो शहर को और मुझे, दोनों को तुमसे एक साथ प्यार हो गया। उस वक़्त ये सोचा नहीं कि तुम चले भी जाओगे। मेरे शहर की हर साँस लेती चीज़ को अपने अपने रंग में रंग के। आसमान, मौसम, ख़ुशबुएँ, गालियाँ, बारिश… सब कुछ ही तो तुम्हारा होता गया है। शहर मेरा नहीं रहा, और तुम लौट गए अपने शहर, तो बस, लावारिस हो गया है। दुनिया के ठीक दूसरे छोर पर तुम रहते हो। Diametrially opposite. धरती पर रहते हुए इससे ज़्यादा दूरी नहीं आ सकती हमारे बीच। यहाँ से किसी भी दिशा में एक क़दम भी बढ़ाऊँगी तो तुम्हारे क़रीब ही जाऊँगी।
तुम्हारे इश्क़ में ये शहर मेरी जान ले लेगा। बस। इतना ही होगा हमारा क़िस्सा।
23rd November
ज़िंदगी ने माथे को चूम कर रहा, सारे रंग तुम्हारे…
कि Monet ने अभी अभी मेरी आँखें रंगी हैं…इसी धुएँ से… और रंग गीले हैं…
27th November
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हम दो दुनियाओं के लोग हैं। हमसे सीधी बातों की उम्मीद मत करो। हमसे शहर के रंग पूछोगे तो तुम्हें दिल के क़िस्सों में उलझा देंगे… कि ज़रा बताओ, कितना आसान है उस लड़के के लिए तुम्हें भूल कर जीना, हँसना, सपने देखना … हमसे दिल के क़िस्से पूछोगे तो दुनिया के हसीन शहरों में ले जाएँगे और दुनिया की सबसे रहस्यमयी मुस्कान दिखा कर कहेंगे, वो मेरे इंतज़ार में कितने सालों से है, देखो… दुनिया आज भी इश्क़ में यूँ सिरफिरे, मुस्कुराते लोगों के मुस्कियाने को मोनालिसा स्माइल कहती है…
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जाने कौन सा शहर तुम्हारे पास हो। नदी किनारे क़तार से तमीज़दार पेड़ लगे हुए थे। पतझर के इन आख़िरी दिनों में बस ठूँठ ही दिखते थे। बस एक आध पेड़ कहीं कहीं होता था, सुलगते पीले पत्तों में, ज़िद्दी। जैसे दिल मेरा, भूलता नहीं तुम्हें।
पूरे शहर में कई सारी बेंचें मिलीं। मैं वहाँ बैठ कर इत्मीनान से चिट्ठियाँ लिखना चाहती थी। जाने कैसे कैसे बातों का ज़िक्र करके, कि जैसे पहली बार भूने हुए चेस्टनट खाए… उनका सोंधा स्वाद बहुत अच्छा लगा मुझे।
मेरे किसी दोस्त को स्ट्रीटलैम्प बहुत पसंद हैं। मुझे याद नहीं किसे। लेकिन एक स्ट्रीट लैम्प की फ़ोटो ले ली। जब याद आएगा दोस्त का नाम लिए बग़ैर उसे कह देंगे, कि याद आ रही थी तुम्हारी। कि हिचकियाँ भी आ रहीं थीं। कि जिसके याद करने से हिचकियाँ आ जाएँ, ऐसे बहुत कम लोग हैं ज़िंदगी में।
तुम्हारे होने से मेरी शाम में रंग होते हैं। तुम कभी कभी अपने शहर के रंग भेज दिया करो मेरे शहर।
शुक्रिया। प्यार।
1st December, Paris
एक वृत्त खिंचता है। तुम्हारे होने के दर्मयान, तुम्हारे अनहुए में। जो चीज़ें हो नहीं सकतीं, उनका। जो शहर धीरे धीरे लुप्त हो रहे हैं, उनका एक नक़्शा खिंचता है। जिन शहरों से मैं प्यार करती हूँ, उनमें मुझे भूल चुके लोग रहते हैं।
कुछ शब्दों को उच्चारण करते हुए वे जी उठते हैं। क्यूँकि हमने उनका प्रयोग लिखने या पढ़ने के बजाए, बोलने में अधिक किया है। इसलिए कुछ नाम हमारे इतने क़रीबी होते हैं। हम उनकी आवाज़ से प्यार करते हैं। उनका नाम लेते हुए जो एक कोमलता आती है हमारी वाणी में, उस कोमलता से प्रेम करते हैं। उसी कोमलता से हम उनसे प्रेम भी करते हैं।
हिंदी के कुछ शब्द प्रयोग से बाहर हैं, जैसे अनुपस्थिति… हम कहते हैं, तुम्हारा न होना… इसलिए इंग्लिश शब्द ऐब्सेन्स हमारे लिए रियल है क्यूँकि हमने उसका बहुत ज़्यादा इस्तेमाल किया है।
लेकिन कुछ शब्द अलग होते हैं। जैसे तुम्हारा नाम।
आवाज़ के पत्थर पर घिस कर शब्द चमक उठते हैं और ज़्यादा धारदार हो जाते हैं। इसलिए तुम्हारे नाम से काटी जा सकती है कलाइयाँ। तुम्हारा नाम एक शार्प औज़ार है जिससे मेरी हत्या की जा सकती है।
9 December, Bangalore