इश्क़। नीम अंधेरे में थकी आँखों से कहती हूँ। खुलो मुझ पर। महबूब। लिखो कोई ख़त कि जिसके जवाब में एक पूरी किताब लिख देने को जी चाहे। कि हमेशा जिस स्याह को तलाशती हूँ वो तुम्हारी आँखों में ही मिलता है। तुम्हारे हिज्र में। मैं तलाशती हूँ तुम्हारे इर्द गिर्द की वो ख़ुशबू। इस शहर से कितना ही दूर है तुम्हारा ख़्वाब भी…मैं सच की दुनिया को भूलना चाहती हूँ…समंदर में फ़्लोट करना चाहती हूँ। किनारे की बालू पर भीगते हुए समंदर का शोर सुनना चाहती हूँ…बंद आँखों में दिखे कुछ भी ना लेकिन उँगलियों में तुम्हारी उँगलियाँ उलझी रहें… मैं तुम्हारे स्पर्श को पहचान लूँ बिलकुल अच्छी तरह…कि कभी याद आए बेतरह तो याद से तुम्हारे स्पर्श को ज़िंदा कर सकूँ अपनी हथेलियों में।
काग़ज़ पर लिखते लिखते मन करता है तुम्हें ख़त लिखना शुरू कर दूँ… लेकिन वो पीले काग़ज़ मिल नहीं रहे जिन पर तुम्हें लिखने में सुख हो। नए काग़ज़ ख़रीदूँगी सिर्फ़ तुम्हें ख़त लिखने के लिए।
तुम लिखते हो तो मेरी दुनिया में भी नए रंग खिलते हैं। पता है जानां, इस शहर से दूर एक बहुत पुराना शिव मंदिर है… यहाँ दक्षिण के मंदिरों में बीच में जल कुंड हुआ करते हैं… वहाँ एक बड़ा सा चौकोर कुंड है, ख़ूब सी सीढ़ियों से घिरा हुआ और ऊपर की ओर चहारदीवारी है और खम्बे हैं… ढलती शाम एक बार वहाँ गयी थी। थोड़ी देर खम्बे से पीठ टिका कर बैठी। धूप सुंदर और नरम थी। सब कुछ शांत था मंदिर के भीतर। कहीं से कोई आवाज़ नहीं। उन पत्थरों पर बैठे बैठे लगता है मैं भी कई सौ साल पुरानी हूँ… तुमसे मेरा प्रेम भी… वहाँ मन शांत होने लगता है… इच्छाएँ ईश्वर के सामने सर झुका कर मंदिर से बाहर चली जाती हैं…पूरी होने की ज़िद नहीं बाँधती। तुम्हें पढ़ना वहाँ जा कर उस शांति को महसूसने जैसा है। एक लम्बी ड्राइव। थोड़ी सी शाम। धूप। पुराने पत्थर, उससे भी पुराने ईश्वर… जाने कितना ही पुराना प्रेम और शायद उससे भी पुराने तुम्हारे शब्द… कि जैसे कुछ हमेशा रहेगा तो तुम्हारी लेखनी। हमारे तुम्हारे बाद भी। जब भी कोई प्रेम में निशब्द महसूस करेगा तो तुम्हारे शब्द उसका हाथ थाम लेंगे… जब कोई तन्हाई में हो तो तुम्हें पढ़ना उसे थोड़ा कम तन्हा महसूस कराएगा।
तुम लिखो कि मेरी दुनिया बनती रहे…नए पुराने शहर खुलते रहें और ख़्वाहिशें मिट मिट कर ख़ुद को बनाती रहें। हमेशा। हमेशा।
लव यू।