मेरे मरने पर मेरा पता पब्लिक कर देना कि वे सारी चिट्ठियाँ मुझ तक पहुँच सकें जिन पर मेरा हक़ है। मुझे यक़ीन है कि बहुत सी चिट्ठियाँ होंगी मेरे हिस्से की…बहुत से अधूरे क़िस्से होंगे जो लोगों को सुनाने होंगे… बहुत सा प्रेम होगा, अनकहा। बहुत से सवाल होंगे जिनके जवाब सिर्फ़ मेरे पास हैं। फिर कितने शहरों की मिट्टी होगी… कितने मौसमों का ब्योरा होगा… और शायद एक उसका ख़त भी तो, जिसने कभी मेरे जीते जी मेरे खतों का जवाब नहीं दिया। बहुत सा कुछ होगा। आधा। अधूरा। कच्चा। कि सब कहते हैं, तुम्हारे ख़तों का जवाब देना नामुमकिन है। शायद इक आख़िरी बार कहनी हो किसी को कोई बात… शायद अलविदा… शायद फिर मिलेंगे… मुझे नहीं मालूम क्या…
बस इतना कि बहुत से पेंडिंग ख़त हैं मेरे हिस्से के…और कि वे सब आएँगे, इक रोज़।
मुझे उन अनगिन चिट्ठियों की चिता पर ही जला देना।