लड़की जाने कब से समंदर देख रही है, दुनिया से पीठ फेरे हुए। उसका सतरंगी दुपट्टा अब खो गया है कि जो तस्वीर में लहरा रहा है, हमेशा के लिए। उसे याद है दुपट्टा कहाँ भूली है। उसने कई बार सोचा, कि उस रिज़ॉर्ट में फ़ोन करके कहे कि उसका सतरंगी दुपट्टा वापस भेज दें बैंगलोर। लेकिन कहाँ कह पायी। वो सोचती रही दुपट्टे के बारे में। अब उसे कौन ओढ़ता होगा। किसी लड़के ने गमछे की तरह गले में डाल लिया होगा क्या? बहुत सुंदर था वो…सूती दुपट्टा।
एक बार खो जाने के बाद, कुछ भी हूबहू वैसा कहाँ मिलता है दुनिया में दुबारा। लड़की ने सोचा तो ज़रा और ज़ोर से पकड़ लिया महबूब का हाथ। राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर तो वो लोग भी खो जाते हैं जो खोना नहीं चाहते। महबूब जाने क्या चाहता हो।
इक शाम की बात थी, ऐसे ही भीड़ वाले एक स्टेशन पर वो मेट्रो में चढ़ गया था और लड़की को भीड़ ने पीछे उलझा के रोक लिया था। काँच के दरवाज़े बंद हुए तो ऐसा लगा, महबूब ने बंद कर लिए दिल के दरवाज़े। लड़की ने काँच पर हाथ रखा तो उसे लगा कि दिल टूट ही जाएगा। अब कौन प्यार करेगा उस लड़की से।
महबूब लेकिन थोड़ा सा प्यार करता था उस लड़की से…वो अगले स्टेशन पर उसका इंतज़ार करता रहा। लड़की को भरोसा नहीं था कि वो इंतज़ार करेगा। वो देर तक एक के बाद एक मेट्रो छोड़ती गयी और रोती गयी। महबूब जानता था लड़की का डर। इसलिए वो दूसरी मेट्रो से लौट आया इसी स्टेशन। वो जानता था लड़की यहीं होगी। उदास और अनमनी।
बहुत साल पहले जब वही लड़का बहुत बहुत प्यार करता था, तभी उसने जाना था। उदास और अनमनी लड़कियों को अलविदा नहीं कहना चाहिए। विदा करने के पहले जो लड़कियाँ ख़ुश होती हैं, वे भी विदा होकर बहुत बहुत उदास हो जाती हैं। इतनी उदासी कि उम्र भर लिख लिख के ख़त्म नहीं होतीं।
उन्हें मिले अब बहुत साल हो गए थे। एक दूसरे को पहली बार जानते हुए, उससे भी कहीं ज़्यादा। लड़की ऊँगली पर गिना रही थी कि उसे क्या क्या याद है। लड़का मुस्कुराते हुए पूछ रहा था। ‘तुम क्या भूली?’। लड़की गिनती भूल कर मुस्कुराने लगी। आइ लव यू टू।
उसने पिछली बार स्टेशन पर जब एक लड़के को अलविदा कहा था तो उसे दुबारा देखना अब तक न हुआ है। तेरह साल हो आए। वो स्टेशन पर ठहरा रह गया था। लड़की ट्रेन से झाँक कर देखती रही दूर तक। ट्रेन मुड़ जाने के बाद भी दरवाज़े पर खड़ी, हाथ हिलाती रही थी। जिस हाथ पर एक गहरे गुलाबी रंग का सिल्क का स्कार्फ़ बँधा था। ये वही स्कार्फ़ था जो लड़की ने उस दिन पहना था जब वो लड़के से पहली बार मिली थी।
एक तो शाम यूँ ही उदास होती है। उसपर वो शाम जिसमें वो शहर से दूर जा रहा हो। लड़की गुमसुम थी। ‘मैं आपको ट्रेन पर छोड़ आऊँ’ वाक्य में प्रश्नवाचक चिन्ह न था। वो ग़लती से ऐसी चीज़ें नहीं भूलती थी कभी। बैग में माचिस रखना। क़लम में स्याही भरना। नोट्बुक में लिखी कविताएँ। वो भूल जाती थी, कैसा था उसका हाथ पकड़ के चलना।
रेलवे स्टेशन की सीढ़ियाँ थीं। ट्रेन का इंतज़ार था। डूबता हुआ सूरज। लड़की ने उस दिन के बाद से सिगरेट पी ही नहीं। इस बात को जानकर कुछ बेवक़ूफ़ लोग उसे शाबाशी दे देते हैं, कि बुरी चीज़ थी सिगरेट, छोड़ के अच्छा किया। उसके बारे में कोई कुछ नहीं कहता, जिसे स्टेशन छोड़ने चली गयी थी। कि ऐसे छोड़ के अच्छा किया कि नहीं।
वॉलेट में अब भी उस दिन का प्लैट्फ़ॉर्म टिकट है। उसपर लिखा है। तीन घंटे के लिए वैध। प्लैट्फ़ॉर्म पर भटकती लड़की सोचती है उसका इंतज़ार अवैध है।