फ़रवरी मुहब्बत का महीना होता है। आधे महीने तक लगभग हम अपने प्रेमी या पार्ट्नर के लिए गिफ़्ट, फूल, वादे जैसी चीज़ों में उलझे रहते हैं। बहुत हद तक लड़कपन का खेल है, एक उम्र के बाद ये सब तमाशा लगने लगता है। चौदह को वैलेंटायन बाबा का नाम ले ले ये महापर्व समाप्त होता है। उसके बाद के दिन वे सारे प्रेमी याद आते हैं जो अब ज़िंदगी में नहीं हैं, जो साथ नहीं हैं। मुझे कई बार लगता है कि 15 फ़रवरी को X-डे डिक्लेयर कर देना चाहिए। कि आप इत्मीनान से अपने किसी पुराने को याद कर सकें। साल में एक बार, अगर आप ठीक-ठाक टर्म्ज़ पर हैं तो एक दूसरे से बात कर सकें। किसी को देखते ही लव ऐट फ़र्स्ट साइट वाले क़िस्से कम होते हैं तो अधिकतर ऐसा होता है कि जिनसे हमें प्यार हुआ हो, वो हमारे बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते हैं। कुछ बातें जो हमने सिर्फ़ उनसे की हैं। कुछ इन्साइड जोक्स, कुछ पसंद की फ़िल्में और गाने।
आज सुबह मैंने उसे सपने में देखा। ग़ज़ब गड्डमड्ड सपना था। मैं उसके घर गयी हूँ, वहाँ उसकी बीवी है, बच्चा है। बहुत प्यारे हैं दोनों। ये कमरा वही है जहाँ वह उन दिनों रहता था जब हम साथ थे। एक कमरा, साथ में किचन और बाथरूम। एक फ़्लोर ऊपर छत। बग़ल से जाती हुयी सीढ़ियाँ। उसकी बीवी चाय बनाने गयी है। फ़र्श पर दो गद्दे हैं। वो बैठा हुआ अख़बार पढ़ रहा है। ये बिलकुल उन सुबहों जैसा है जैसी हमने साथ बितायी थीं। उन दिनों उसका दोपहर का शिफ़्ट होता था। मैं ऑफ़िस जाने के पहले उससे मिलती हुयी जाती थी। वो चाय के इंतज़ार में होता था। मैं गर्म चाय, अख़बार और उसे छोड़ कर ऑफ़िस निकल जाती थी। सपना ठीक वहीं रुका हुआ है। मैं खड़ी ही हूँ इतनी देर। वो उठा है, लगभग रूआँसा और उसने मुझे बाँहों में भर लिया है। जैसे ये हमारी आख़िरी मुलाक़ात हो। आत्मा अगर भीग सकती है, तो भीग रही है। मेरे अंदर कोई ग्लेशियर पिघल रहा है। प्रेम कभी ख़त्म नहीं होता है, सपने में तो बिल्कुल भी नहीं। मैं सोच रही हूँ, उसने क्यूँ कहा था वो मुझसे ज़िंदगी भर नहीं मिलेगा। हम छत पर चाय पी रहे हैं, चाय में अदरक डली हुयी है। वो मुझसे पूछता है, तुम चाय कबसे पीने लगी। मैं याद करने की कोशिश करती हूँ उसके हाथ कैसे थे। सपने में वही छत है, दूर पार्क में खेलते बच्चों का शोर। हम दोनों उदास हैं। कि अब जाना पड़ेगा।
मैं ऑटो करने के लिए नीचे सड़क पर आयी हूँ जहाँ लाइन से ऑटो लगे हुए हैं। IIMC जाना है, अरुणा आसफ़ अली रोड चलोगे? मैं अचरज करती हूँ कि इतने सालों बाद भी मुझे वहाँ का पता इस अच्छी तरह से याद है। जबकि वहाँ अधिकतर 615 बस से ही आते जाते रहे। अजीब ये रहा कि ऑटो मैं बैंगलोर में ले रही हूँ। पैरललि एक और सपना चल रहा था जिसमें मेरी आक्टेवीआ ख़राब हो गयी थी और सर्विस के लिए सर्विस सेंटर भेजे थे। कार मुझे हैंडओवर करने के लिए दिल्ली से कोई व्यक्ति आया हुआ है और इसलिए रुका हुआ है कि मैं कार लेने जा नहीं पा रही हूँ। सर्विस का बिल मुझे समझ नहीं आता कि कोई भी कम्पोनेंट हज़ार दो हज़ार टाइप ही है तो हद से हद दस हज़ार का बिल बनेगा ये एक लाख दस हज़ार का बिल क्या ग़लती से बन गया है। मैं उसे कहती हूँ कि देखिए वीकेंड गुज़र गया है, हफ़्ते भर तक मुझे फ़ुर्सत तो मिलेगी नहीं, मैं अगले शनिवार ही आ सकती हूँ। सर्विस सेंटर मेरे घर से तक़रीबन चार घंटे की ड्राइव है। मेरे फ़ोन की स्क्रीन टूटी हुयी है। मौसम बहुत ठंढा है। मैंने एक लम्बा फ़र का ओवेरकोट पहना हुआ है जिससे हल्की गरमी महसूस हो रही है। उसने जो बाँहों में भरा था, वो गर्माहट भीतर बाहर है।
नींद खुली है तो ठंढ लग रही है। जबकि मुझे कम्बल फेंकने की आदत कभी नहीं रही। कल बैंगलोर में बारिश हुयी है तो मौसम ठंढा है। वो इसी शहर में है। मैं क़िस्मत पर भरोसा करती हूँ कि हमें एक दिन मिला देगी। क़िस्मत शायद मुझपर भरोसा करती हो कि मैं ख़ुद उससे मिलने चली जाऊँगी। मुझे उसे देखे अब लगभग पंद्रह साल होने को हैं। सोशल मीडिया पर उसकी कोई तस्वीर नहीं। कोई कॉमन फ़्रेंड भी नहीं। वो दिल्ली में था तो एक दिन दोस्त ने उसके बेटे की फ़ोटो भेजी थी। लेकिन उसकी नहीं। मैंने बहुत तड़प के उससे पूछा था उस रोज़ कि वो दिखता कैसा है। तो उसने बताया, कि एकदम पहले जैसा, बस थोड़े से बाल सफ़ेद हुए हैं। इसके अलावा कोई बदलाव नहीं।
हमारे अंदर कुछ दुःख पलते हैं। उससे दूर होना एक ऐसा ही दुःख है। उसे कभी कभार न देख पाना। उसकी आवाज़ न सुन पाना। हम हमेशा उन लोगों से प्यार क्यूँ करते हैं जो हमसे प्यार नहीं करते। ये प्यार का इक्वेज़न हमेशा ग़लत क्यूँ होता है। कैसा सपना था। जाने कितने दिन दुखेगा।