Loving can heal. Loving can mend your soul.
Lyrics from the song, Photograph.
अपने जैसे कुछ लोगों से बात कर के तन्हाई दुखती थोड़ी कम है। इधर कुछ दिनों में कुछ दोस्तों को फ़ोन किया, उनसे बात करते हुए महसूस हुआ कि लिखना क्यूँ ज़रूरी है। हम में से कौन जाने कैसी लड़ाई लड़ रहा हो। ये जान कर अकेलापन थोड़ा कम लगता है कि सब लगभग ऐसा कुछ ही महसूस कर रहे हैं। किसी तरह के तूफ़ान से गुज़र रहे हैं।
हम सबने किसी न किसी को खोया है। ऐसे लोग जो अचानक चले गए हैं ज़िंदगी से, बिना अलविदा कहे हुए, हमारे पास उनकी आख़िरी मुस्कान रह गयी है। हम उस मुस्कान को सहेजे हुए, कलेजे से लगाए उनको थोड़ा पास महसूसने की जद्दोजहद में हैं। हमें शब्द काफ़ी नहीं पड़ते, लेकिन हमारे पास इसके सिवा कुछ और नहीं है। हम लिख कर उनको थोड़ा सा जी लेते हैं। ये कुछ कुछ रोने जैसा ही है।
मुझे याद है, जब पहली बार किसी लेखक का ऐसा कुछ लिखा हुआ पढ़ा था जो मैं महसूस कर रही थी पर शब्दों में रख नहीं पा रही थी तो कितनी राहत हुयी थी। ऐसा लगा था कि मेरा दुःख मेरा अकेला नहीं है। कहीं किसी ने ऐसा कुछ जिया है और उसके पास इस दुःख से उबर जाने का कोई तरीक़ा है। सिर्फ़ किसी का साथ होना भी बहुत बड़ी राहत थी। क्यूँकि हम अपने दिमाग़ में चल रहे हज़ार ख़यालों में पागल हो जाते। दुःख। गिल्ट। अफ़सोस। कितना कुछ होता है जिसमें हम डूब सकते हैं। लेकिन शब्द रोशनी होते हैं। गहरे समंदर में पानी के ऊपर चमकती रोशनी। जिससे हमें दिशा मिलती है। हम अपनी जगह से वहाँ जा सकते हैं जहाँ धूप और खुली हवा है। कुछ लोगों का लिखना मेरे लिए ऐसा है। शायद मेरा लिखना कुछ लोगों के लिए ऐसा कुछ हो।
हम अपने फ़ेवरिट लेखक से कोई कविता कहानी माँगते हैं। जैसे चोट के लिए डिटोल और फिर कोई दवा होती है। ज़ख़्म पर काग़ज़ रखते हैं, शब्द जज़्ब होते हैं और लगता है ज़ख़्म अब थोड़ा कम दुखेगा। हम उससे कहते हैं कि उसका लिखना मेरे लिए ज़रूरी है। उसे पढ़ती हूँ तो साँस थोड़ी ठीक ठीक रफ़्तार से आती है। ताज़े शब्दों की गंध होती है, जैसे ताज़ी फ़सल की, आँच पर फूलती हुयी गेहूँ की रोटी या पसाए जा रहे भात की होती है…गंध जो नहा के आने के बाद महबूब के इर्द गिर्द होती है…पहाड़ी झरने के पानी की…दिल्ली की…हम किसी गंध को कहीं से भी रेप्लिकेट नहीं कर सकते।
कोविड होने पर गंध चली जाती है तो हम एकदम अकबका जाते हैं। मुझे ऐसी बौखलाहट एक बार ही याद है। मैं न्यूयॉर्क में खो जाती क्यूँकि मेरा फ़ोन एक पर्सेंट चार्ज पर था और कभी भी स्विच ऑफ़ हो सकता था। मैं जिस होटल में ठहरी थी, मुझे उसका नाम नहीं याद था। इत्तिफ़ाक़ ऐसा कि मैप पर मार्क नहीं किया था। उस वक़्त दोस्त को फ़ोन किया था। आवाज़ रुआंसी हो गयी थी मेरी। क्यूँकि मुझे लगता था मैं कभी भी कहीं भी खो नहीं सकती। मुझे हमेशा सारे ही रास्ते याद रहते हैं। सारे ही। मैंने कहा उससे कि मैं इस मेट्रो स्टेशन के बाहर रहूँगी, यहाँ आ सकोगे, प्लीज़। कि मैंने बंद होते फ़ोन से आख़िरी कॉल किया है तुमको। वहाँ मेट्रो के बाहर उसे देख कर मुझे जैसी राहत हुयी थी…उसे शब्दों में लिख नहीं सकते। आप कभी नहीं जानते कि आपके लिए जो बहुत छोटी सी चीज़ होगी, वो किसी के लिए कितनी बड़ी राहत हो सकती है।
सारी इंद्रियों में गंध सबसे हार्ड हिटिंग है…कि हम किसी भी गंध को रेप्लिकेट नहीं कर सकते। खोयी हुयी गंध कहीं मिल जाती है, दुबारा और हम किसी एक मोमेंट तक लौट जाते हैं। गंधों का अपना साम्राज्य होता है। मैं जो उपन्यास लिख रही थी, उसमें जहाँ किरदार की एंट्री होती है, वह एक स्वीमिंग पूल के इर्द गिर्द का हॉल है जहाँ क्लोरीन की बहुत तेज़ गंध होती है। इस गंध में उलझे हुए इतरां सोचती है, उसके कांधों से कैसी ख़ुशबू आती होगी।
कहीं न कहीं हम लौट कर वहाँ ही आते हैं जो हमारा अपना होता है। मेरे लिए लिखना ही सब कुछ समझने का ज़रिया है। मैं कोशिश करती हूँ कि लिखूँ, ताकि इस मुश्किल वक़्त में मैं पार पा सकूँ। अगर आप भी परेशान हैं तो वहाँ पहुँचिए जो आपका अपना है, घर है, वहाँ राहत है।
दुआ।
आपकी सोच काबिले तारीफ है कास हर इंसान का नजरिया आप के जैसा हो पूजा दीदी
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