हम मर रहे होते हैं और किसी को पढ़ कर थोड़ा सा जीने लगते हैं। इतना ही कर सकता है कोई कवि या लेखक हमारे लिए। हम अंधेरे में बैठे होते हैं और अनजान शब्द रौशनी के जुगनुओं की तरह टिमटिमाने लगते हैं। इनसे रात छोटी नहीं होती, बस अवसाद थोड़ा कम होता है।
हम कि जो अपने पागलखाने में किसी तरह बस अपने सोचने की क्षमता को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे होते हैं, [preserving our sanity] वैसे में किसी कवि का लिखा हुआ हमारा हाथ थाम कर हमें सोच की एक दिशा देता है। हम मन में रामचरित मानस की ही कोई चौपायी याद करते हैं, उस राम को बसाना चाहते हैं अपने मन में, ‘हृदय राखि कोसलपुर राजा’। मंत्र हमारा हाथ शायद अंतिम क्षण तक नहीं छोड़ते। मैं बेहद उदासी, तन्हाई, अंधेरे और मृत्यु के समीप भी महामृत्युंजय का एक एक शब्द छू सकती हूँ।
सुबह का झुटपुटा अँधेरा है। मौसम गर्म होता जा रहा है। धूप अब जलाने लगी है। मैंने खिड़की पर रेशमी पर्दा खींच दिया है। परदे से छन कर अँधेरा कमरे में गिर रहा है। मेरे पौधे मुझसे नाराज़ हैं कि मैं इन दिनों जाने कहाँ रहती हूँ। वैसे भी ये कमरा जल्दी ही ग़ायब हो जाने वाला है। मेरी कहानियों की तरह।
कहानी लिखने की कई वजहें होती हैं जो हमें ठीक ठीक मालूम नहीं होतीं अक्सर। हम लिख रहे होते हैं कि हमें लिखना होता है। जैसे हम प्रेम में होते हैं तो कोई वजह नहीं होती। लेकिन प्रेम के रीत जाने की कोई वजह कभी कभी मिल जाती है। जैसे लिखने की वजह होती है, कभी कभी। हम लिखते हैं क्यूँकि इस दुनिया में रोने की कोई भी जगह नहीं मिलती।
कई कई सालों से आँसुओं का एक ग्लेशियर है। सीने के बीच जमा हुआ। उस लड़की को देर तक बाँहों में थामे रहे कोई। कुछ भी ना कहे। इंतज़ार करे। उस पहले गर्म आँसू का…उस पहली हिचकी का। वो नहीं जानती कि किरदारों का रोना कैसे लिखे कि उसने कितने कितने सालों से सब कुछ एक बेहद सर्द आह में जमा रखा है।
दोस्त चिढ़ा कर हँस रहा होता है मुझपर। तुम्हें चाहिए क्या। एक औरत का अभिमान होता है कि उसपर कितने पुरुष मर मिटे… तुम भी डाइअरी मेंटेंन करती होगी। मन में ख़ुश होती होगी, कि वाह ये भी मर मिटा हम पर। कि तुम अचरज कर रही हो कि एक यही तो था कि जो दोस्त था…और इसको भी प्यार हो गया हमसे। मुझे ठीक मालूम नहीं कि लेखिका कह रही थी कि औरत, लेकिन कहा मैंने उससे। मैं सोलह की लड़की नहीं रही जो प्यार हो जाने पर भौंचक हो जाती थी। अब मिडलाइफ पहुँच रही हूँ। अब किसी चीज़ पर चकित होना बहुत मुश्किल है। और प्यार। वो तो सबको ही हो जाता है हमसे, इसमें अब हम चौंकते नहीं। वो दिन अब नहीं रहे कि जीवन में सबसे अद्भुत चीज़ हुआ करती थी प्यार। अब समझती हूँ कि फ़ैज़ ने क्यूँ लिखा, ‘और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा’। हम मेरे दिखने पर बात कर रहे थे। कि मैं कह रही थी, इन दिनों मैं बिलकुल भी अच्छी नहीं दिखती और वो फिर से हँस रहा था, कि तुम कब समझोगी, दिखने से कुछ नहीं होता। पर इस पहली बार मैं समझ रही थी। कि हाँ, इससे कभी फ़र्क़ नहीं पड़ता कि हम दिख कैसे रहे हैं। हमेशा बात ये होगी कि हम हैं क्या…कौन…कैसे। कि प्यार हमेशा हमारे भीतर के किसी इंसान से होता है। पर जीवन में कितने रंग का दुःख है, ये भी देखना बाक़ी था। फिर वो पूछता है हमसे, कि तुमको जाने क्या चाहिए, और वो क़सम से, इस शहर में होता तो हम जा कर पीट आते उसको। कि हमको बात चाहिए। समझ नहीं आया तुमको इतने इतने साल में। भाड़ में गयी प्यार मुहब्बत। हो गया तो हो गया, ऐसा कौन सा आसमान टूट पड़ा। लेकिन हमसे बात करना बंद करने का क्या ज़रूरत था। हमको बात करनी है उससे। वो कह क्यूँ नहीं सकता हमसे। इतना कैसा मुश्किल हो जाता है। ये क्या ज़िंदगी भर ऐसे ही दोस्त छूटते रहेंगे हमसे।
ख़ूबसूरती मन की होती है। बातों की होती है। कुछ लोगों से बात करना अच्छा लगता है। उनके साथ होना अच्छा लगता है। उनके पास होने से मौसम अच्छा लगता है, शहर सुंदर लगता है…कॉफ़ी में, खाने में, स्वाद ज़्यादा आता है। कुछ लोग ख़ूबसूरत होते हैं जो हमें अच्छे लगते हैं। हम ठीक ठीक नहीं जानते इसमें ख़ूबसूरती कहाँ है। प्यार से देखने पर सब लोग ही सुंदर लगते हैं।
ग़ुस्सा किसी का, लड़ किसी और से रही थी। कि यार उससे इतना नहीं हो सकता कि कह दे। कि देखो, सॉरी नॉट सॉरी पर प्यार हो गया है तुमसे और जितना हो गया उतना भी बहुत है, अब तुमसे बात नहीं करेंगे। या कि देखो, अब तुमसे बात करने का मन नहीं करता है, सब बात सब ख़त्म हो गया हमारे बीच में। या कि कुछ भी कारण। कह काहे नहीं सकता है कि हमसे बात नहीं करना है। कितना मुश्किल होता है ऐसा कहना। हम तो कह देते हैं। कई बार कहे हैं…कि हमारा अभी मेंटल स्टेट नहीं है कि नयी दोस्ती कर सकें या तुम्हारे जैसे कॉम्प्लिकेटेड इंसान के साथ दोस्ती कर सकें या कि तुम्हारे जैसे सिम्पल इंसान से दोस्ती करें। कहना आसान होता है। दुखता भी एक ही बार है, लेकिन आख़िरी बार होता है वो।
यूँ बिना कहे चले जाने वाले लोग। उफ़। और ये हमको ही मिलने होते हैं!