जानां
तुम्हारे इश्क़ का रुतबा
कुछ ऐसा है
आज की शाम
दो रक़ीब पीते रहे
एक ही जाम से
तुम्हारे हिज़्र का ज़हर
चढ़ता रहा
तुम्हारे नाम का ख़ुमार
रूह में टीसता रहा
तुम्हारा लम्स
इक तुम्हारा शहर था
तेरह रेगिस्तान पार
उनके दिल में
बसता हुआ
वे गुनगुनाते रहे
बारिश. बारिश. बारिश