याद के अनाथ क़िस्सों को
कोई कवि अपनी कविता में पनाह नहीं देता
कोई लेखक छद्म नाम से नहीं छपवाता
कोई अखबारी रिपोर्टर भी उन्हें दुलराता नहीं
कोई कवि अपनी कविता में पनाह नहीं देता
कोई लेखक छद्म नाम से नहीं छपवाता
कोई अखबारी रिपोर्टर भी उन्हें दुलराता नहीं
इसलिए मेरी जान,
आत्महत्या हमेशा अपने पैतृक शहर में करना
वहाँ तुम्हारी लाश को ठिकाना लगाने वाले भी
तुम्हें अपना समझेंगे
आत्महत्या हमेशा अपने पैतृक शहर में करना
वहाँ तुम्हारी लाश को ठिकाना लगाने वाले भी
तुम्हें अपना समझेंगे
***
बाँझ औरत
दुःख अडॉप्ट करती है
और करती है उन्हें अपने बच्चों से ज़्यादा प्यार
दुःख अडॉप्ट करती है
और करती है उन्हें अपने बच्चों से ज़्यादा प्यार
लिखती है प्रेम भरे पत्र
पुराने, उदार शहरों के नाम
कि कुछ शहर बच्चों से उनके पिता का नाम नहीं पूछते
पुराने, उदार शहरों के नाम
कि कुछ शहर बच्चों से उनके पिता का नाम नहीं पूछते
***
असफल प्रेमी
मरने के लिए जगह नहीं तलाशते
जगहें उन्हें ख़ुद तलाश लेती हैं
दुनिया की सबसे ऊँची बिल्डिंग के टॉप फ़्लोर पर
उसके दिल में एक यही ख़याल आया
मरने के लिए जगह नहीं तलाशते
जगहें उन्हें ख़ुद तलाश लेती हैं
दुनिया की सबसे ऊँची बिल्डिंग के टॉप फ़्लोर पर
उसके दिल में एक यही ख़याल आया
***
उस शहर को भूल जाने का श्राप
तुम्हारे दिल ने दिया था
इसलिए, सिर्फ़ इसलिए,
मैंने इतना टूट कर चाहा
हफ़्ते भर में हो चुकी है कितनी बारिश
तुम्हें याद है जानां, सड़कों के नाम?
स्टेशनों के नाम? कॉफ़ी शाप, व्हिस्की, सिगरेट की ब्राण्ड?
तो फिर उस लड़की का क्या ही तो याद होगा तुमको
भूल जाना कभी कभी श्राप नहीं, वरदान होता है
तुम्हारे दिल ने दिया था
इसलिए, सिर्फ़ इसलिए,
मैंने इतना टूट कर चाहा
हफ़्ते भर में हो चुकी है कितनी बारिश
तुम्हें याद है जानां, सड़कों के नाम?
स्टेशनों के नाम? कॉफ़ी शाप, व्हिस्की, सिगरेट की ब्राण्ड?
तो फिर उस लड़की का क्या ही तो याद होगा तुमको
भूल जाना कभी कभी श्राप नहीं, वरदान होता है
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बंद मुट्ठी से भी छीजती रही
तुम्हारी हथेली की गरमी
दिल के बंद दरवाज़े से
रिस रिस बह गया कितना प्रेम
कैलेंडेर के निशान को कहाँ याद
बाइस सितम्बर किस शहर में थी मैं
रूह को याद है मगर एक वादा
अब इस महीने को, ‘सितम’ बर कभी ना कहूँगी
तुम्हारी हथेली की गरमी
दिल के बंद दरवाज़े से
रिस रिस बह गया कितना प्रेम
कैलेंडेर के निशान को कहाँ याद
बाइस सितम्बर किस शहर में थी मैं
रूह को याद है मगर एक वादा
अब इस महीने को, ‘सितम’ बर कभी ना कहूँगी