पिछले हफ़्ते मेरा फ़ोन खो गया था। icloud में जगह भर गयी थी और हम स्पेस ख़रीदे नहीं थे, इस दिक़्क़त में whatsapp का बहुत सारा बैकअप पेंडिंग था। कुछ दोस्तों से रिक्वेस्ट किए कि उनके पास जो तस्वीरें हैं मेरी, वो भेज दें।
इन तस्वीरों को देख कर लगता है कि कितनी छोटी छोटी चीज़ों से कितना ख़ुश हुयी हूँ मैं। चाय के कप से उठती भाप। फूलों के पीछे होती बारिश। विंडचाइम्ज़ की आवाज़। पोस्टकार्डस जो मैं लिखती हूँ, पर भेजने के लिए नहीं। Lamy के मेरे पेन। बस कुछ लोग, जिन्हें कुछ भेजने के पहले सोचना नहीं पड़ता।
लम्बी चिट्ठियाँ और लम्बे emails लिखना अच्छा लगता रहा है। मेरी चिट्ठियाँ ए4 काग़ज़ पर कमसे कम चार पन्नों की होती थीं। इतनी इतनी बातें हुआ करती थीं मेरे पास।
पर इतनी बातें होने पर भी मैं किससे बात कर रही हूँ इसको लेकर बहुत चूज़ी रही हूँ। मैं अकेले रहते हुए आसमान देखते हुए दोपहर बिता दूँगी लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति से बात नहीं करूँगी जो मुझे पसंद नहीं हो। मैं कैसे और किन शब्दों में कहूँ, कि ख़ास हो तुम…मेरी ज़िंदगी में आम लोग नहीं होते, भले ही आम कितना भी पसंद है मुझे (उफ़, अब मुझे सोना चाहिए, PJs मारने का मन कर रहा है, बहरहाल)।
तारतम्य नहीं है। लेकिन जो है, रहना चाहिए। जैसे कि दर्द। अभी पेनकिलर खाया है, लेकिन कमबख़्त असर नहीं कर रहा। राइट पैर में प्लास्टर हुआ है, जिसके कारण चाल बदल गयी है और बाएँ हिस्से पर ज़ोर ज़्यादा पड़ता है, जिसके कारण रीढ़ की वाट लग गयी है। अभी जैसे पूरा स्पाइनल कॉर्ड दुःख रहा है बुरी तरह से। पहले की तरह देर तक गरम पानी से नहाना भी मुश्किल है।
फ़िज़िकल पेन से मुझे कम दिक़्क़त होती है लेकिन इमोशनल ट्रॉमा बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल होता है। इन दिनों ऐसा है कि धड़कन दिन भर बढ़ी रहती है। साँस एकदम भी रिदम में नहीं।
समय में उलझी हुयी हूँ मैं। अतीत में जी रही होती हूँ या भविष्य में। कि फ़िलहाल का लम्हा दुखता है कि तुम दूर हो बहुत और मेरी हथेलियाँ ठंडी पड़ रही हैं और मुझे मर जाने का डर नहीं लगता, लेकिन तुमसे दुबारा मिले बिना मर जाने का डर ख़ूब ख़ूब लगता है।